Saturday 10 December 2016

जमींदार का निकम्मा लड़का

बहुत साल पहले की बात है। एक बहुत बड़ा जमींदार था। उसके पास बहुत सारी जमीन थी, बहुत सारी भेड़ -बकरियाँ थी। लेकिन बेटा बड़ा ही निकम्मा। दिन भर आवारागर्दी करता रहता। जमींदार ने सोचा कि इसकी शादी - ब्याह करवा दूँ ताकि ये संभल जायेगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा। जमींदार का बेटा घर से ऐसा भागा कि वापस ही नहीं आया। इसके बाद उसकी बीवी भी घर छोड़ कर चली गयी, निखट्टू की आस में आखिर कब तक जिंदगी बर्बाद करती अपनी।

जमींदार की मृत्यु के बाद उसकी धन संपत्ति को सँभालने वाला कोई नहीं था, इस मारे गाँव वालों ने धीरे-धीरे उसकी धन संपत्तियों पर कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया। अकेली बुढ़िया किस किस से लड़ती, सो दम खाकर अपने साम्राज्य को लुटता हुआ देखती रही, इस आस में कि एक दिन उसका निकम्मा बेटा वापिस आएगा और बची खुची संपत्ति को संभालेगा। एक दिन हुआ भी ऐसा ही, जमींदार का निकम्मा बेटा घूमता घूमता अपने गाँव वापस आ गया।

जमींदारी के नाम पर अब सिर्फ भेड़ - बकरियाँ रह गई थी। जमींदार का निकम्मा बेटा उन्ही भेड़-बकरियों को सुबह चराने ले जाता और शाम को घर वापस ले आता। लेकिन उसके निकम्मापन में कोई कमी नहीं आई। भेड़ बकरियों को चरने के लिए छोड़ कर वो या तो सो जाता या फिर दूसरे लड़कों के साथ नशे में लिप्त हो जाता। नशे की हालात में अक्सर जंगल में ऊँचे टीले पर खड़े होकर और अपनी शेखी बघारता और दूसरे चरवाहों का मजाक उड़ाता।

एक दिन जब वह ऊँचे टीले पर खड़े होकर अपनी शेखी बघार रहा था तो मौका पाकर गाँव वालों ने उसकी सारी भेड़ -बकरियाँ चुरा ली। जब शाम को घर लौटा तो साथ में भेड़ -बकरियाँ न पाकर उसकी माँ ने उसको खूब डाँट लगाई और अपनी किस्मत को कोसा। दूसरे दिन वह जंगल में ऊँचे टीले पर जाकर खड़ा हो गया और जोर जोर से गाँव वालों को आवाज़ें लगाने लगा। गाँव वालों ने सोचा कि शायद कोई जंगली जानवर इसको पकड़ने की कोशिश कर रहा है। सुनते ही सभी दौड़कर टीले के पास पहुँचे। उनके पहुँचते ही निकम्मा किसी मंजे हुए नेता की तरह गाँव वालों को संबोधित करने लगा।

"भाइयों और बहनो, मुझे पता है कि मेरी भेड़ -बकरियाँ तुममे से किसी ने या कुछ लोगों ने चुराई है। मैं आज शाम तक का समय देता हूँ। तुमलोग चुपचाप मेरी सारी भेड़ -बकरियाँ वापस कर दो। तुम लोगों को कुछ नहीं कहूँगा।" गाँव वालों ने निकम्मे की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और गाँव में वापस आकर अपने काम पर लग गए। दिन भर इंतज़ार करने के बाद जब शाम को घर पहुँचा माँ ने कल से दोगुनी ज्यादा डाँट लगाई। दूसरे दिन फिर सुबह सुबह जमींदार का बेटा जंगल में ऊँचे टीले पर जाकर खड़ा होकर फिर से गाँव वालों को जोर जोर से आवाज़ें लगाने लगा।

गाँव वाले फिर से भागे भागे पहुंचे। वह फिर शुरू हो गया। "भाइयों और बहनो, तुमलोगों ने मेरी भेड़ -बकरियाँ अभी तक वापस नहीं की। मैं आज शाम तक का समय देता हूँ। तुमलोग चाहो तो आधी भेड़ -बकरियाँ अपने पास रख लो लेकिन आधी भेड़ -बकरियाँ वापस कर दो। मैं तुम लोगों को कुछ नहीं कहूँगा।" लेकिन गाँव वालों ने उसकी बात पर कान नहीं दिया और वापस आकर अपने काम में लग गए। शाम तक किसी ने भी एक भी भेड़ या बकरी वापस नहीं की। शाम को घर लौटने पर माँ ने फिर से उसकी अच्छी तरह खबर ली।

दूसरे दिन सुबह फिर से जंगल में ऊँचे टीले पर खड़ा होकर आवाज लगाने लगा। गाँव वालों के आने पर उनको संबोधित करते हुए बोला। "भाइयों और बहनो, तुमलोगों ने मेरी भेड़ -बकरियाँ अभी तक वापस नहीं की। मैं आज शाम तक का समय देता हूँ। तुमलोग चाहो तो तीन चौथाई भेड़ -बकरियाँ अपने पास रख लो लेकिन एक चौथाई भेड़ -बकरियाँ वापस कर दो। मैं तुम लोगों को कुछ नहीं कहूँगा।" गाँव वालों ने फिर से अनसुना कर दिया। लेकिन जमींदार का लड़का टीले से नहीं उतरा। शाम की मियाद ख़त्म होते ही उसने फिर से जोर जोर से गाँव वालों को आवाज लगाना शुरू कर दिया।

पहले तो गाँव वाले उसकी आवाज़ को बहुत देर तक अनसुना करते रहे। लेकिन जब वह चुप नहीं हुआ तो एक बार फिर सब लोग ऊँचे टीले के पास पहुँचे। जमींदार के लड़के ने बोलना शुरू किया। इस बार उसकी आवाज़ में कड़कपन था। बोला, "भाइयों और बहनो, तुमलोगों ने मेरी एक चौथाई भेड़ -बकरियाँ भी अभी तक वापस नहीं की। अब तुम सब की मोहलत और रियायत ख़त्म। अब मैं कल सुबह वो करके दिखाऊंगा, जो तुम लोगों ने आज तक नहीं देखी होगी। कल मैं वही करूँगा जो मैंने आज से 40 साल पहले किया था, जब शहर में किसी ने मेरी साईकिल चुरा ली थी लेकिन मेरे बार-बार कहने पर भी वापस नहीं की थी।

इतना सुनना था कि गाँव वाले बुरी तरह घबरा गए। बिलकुल बदहवास हो गए। भागे भागे गाँव गए। सबने आपस में मशविरा किया कि पता नहीं ये निकम्मा कल सुबह क्या करे। पता नहीं क्या किया था इसने 40 साल पहले जब शहर में इसकी साइकल चोरी हो गई थी। कोई मुसीबत मोल लेने से अच्छा है कि इसकी भेड़-बकरियाँ ही वापस कर दी जाए। इतना तय कर सब लोग भेड़ बकरियों के साथ जंगल में ऊँचे टीले के पास पहुँचे और माफी माँगते हुए, जमींदार के लड़के को उसकी सारी भेड़ -बकरियाँ वापस सौंप दी। जमींदार का लड़का विजयी मुस्कान छोड़ते हुए गाँव वालों की तरफ देखा।

गाँव वाले एक दूसरे की तरफ देखने लगे। सब के मन में एक सवाल था लेकिन पूछने की हिम्मत किसी में नहीं थी। बहुत हिम्मत करके गाँव के सबसे बुजुर्ग ने पुछा, "बेटा हमने तुम्हारी भेड़ -बकरियाँ वापस कर दी। हम लोग बहुत शर्मिंदा भी हैं। बेटा बुरा न मानो तो एक बात पूछुं ? तुमने ऐसा क्या किया था जब तुम्हारी साईकिल चोरी हो गई थी 40 साल पहले ? " जमींदार का लड़का बोला, "क्या करता चाचा ? मैंने दूसरी साईकिल खरीद ली थी।"

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